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अ॒स्माक॑मिन्द्र भूतु ते॒ स्तोमो॒ वाहि॑ष्ठो॒ अन्त॑मः। अ॒स्मान्रा॒ये म॒हे हि॑नु ॥३०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asmākam indra bhūtu te stomo vāhiṣṭho antamaḥ | asmān rāye mahe hinu ||

पद पाठ

अ॒स्माक॑म्। इ॒न्द्र॒। भू॒तु॒। ते॒। स्तोमः॑। वाहि॑ष्ठः। अन्त॑मः। अ॒स्मान्। रा॒ये। म॒हे। हि॒नु॒ ॥३०॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:45» मन्त्र:30 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:26» मन्त्र:5 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:30


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजा और प्रजाजन एकमति करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) धन के देनेवाले ! (अस्माकम्) हम लोगों का (वाहिष्ठः) अतिशय धारण करनेवाला (अन्तमः) समीप में वर्त्तमान (स्तोमः) प्रशंसास्वरूप व्यवहार (ते) आपका बढ़ानेवाला (भूतु) होवे और जो आपके समीप में वर्त्तमान अतिशय धारण करनेवाला प्रशंसारूप व्यवहार हो वह (अस्मान्) हम लोगों को (महे) बड़े (राये) धन के लिये (हिनु) बढ़ावे ॥३०॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! जो ऐश्वर्य्य आपका वह प्रजा का, और जो प्रजा का वह आपका हो ऐसा करने के विना राजा और प्रजा की उन्नति का नहीं सम्भव है ॥३०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजा राजप्रजाजनाश्चैकमत्यं कुर्य्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे इन्द्रास्माकं वाहिष्ठोऽन्तमः स्तोमः ते वर्द्धको भूतु। यश्च तेऽन्तमो वाहिष्ठः स्तोमो भूतु सोऽस्मान् महे राये हिनु ॥३०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्माकम्) (इन्द्र) धनप्रद (भूतु) भवतु (ते) तव (स्तोमः) प्रशंसामयो व्यवहारः (वाहिष्ठः) अतिशयेन वोढा (अन्तमः) निकटस्थः (अस्मान्) (राये) (महे) (हिनु) वर्धयतु ॥३०॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! यदैश्वर्यं तव तच्च प्रजाया यत्प्रजायास्तत्तवास्तु नैवं विनाराजप्रजाजनानामुन्नतिः सम्भवति ॥३०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा ! जे तुझे ऐश्वर्य आहे ते प्रजेचे आहे व जे प्रजेचे आहे ते तुझे होय. असे मानल्याखेरीज राजा व प्रजा यांची उन्नती होऊ शकत नाही. ॥ ३० ॥